BA Semester-1 Hindi Kavya - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

अध्याय - 22
घनानंद

(व्याख्या भाग)

सुजानहित

(1)

रूप निधान सुजान सखी जब तैं इन नैनानि नेकु निहारे।
दीठि थकी अनुराग छकी मति लाज के साज-समाज बिसारे।
एक अचंभौ भयौ घनआनँद हैं नित ही पल-पाठ उघारे।
टारैं रैं नहीं तारे कहूं सु लगे मनमोहन-मोह के तारे ॥

सन्दर्भ - उपरोक्त अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक 'हिन्दी काव्य' के घनानंद ग्रंथावली के 'सुजान हित' से लिया गया है।

प्रसंग - घनानंद रचित सुजानहित नामक ग्रंथ के आरम्भिक भाग से लिया गया है। इस सवैये में कवि नायक को पहली बार देखने पर नायिका के हृदय पर जो प्रभाव पड़ता है, उसका वर्णन कर रहा है। नायक या कृष्ण के सौन्दर्य का जो प्रभाव नायिका या गोपी पर पड़ा, उसका वर्णन करते हुए वह सखी से कहती हैं

व्याख्या - हे सखि ! जब मैंने अपने नेत्रों से सौन्दर्य और रूप की राशि वाले, आकर्षक व्यक्तित्व वाले चतुर कृष्ण को देखा है, उनके सौन्दर्य की झलक मात्र पायी है, तब से मेरी मनोदशा बड़ी विचित्र हो : गयी है। उसका सौंदर्य देखकर मेरे मन में इतना प्रेम उपजा है, कि मेरी हालत अजीब हो गई है। उन रूप-सौन्दर्य देखते ही मेरी आँखे विस्मय मुग्ध हो उठीं, मेरा हृदय प्रेम में डूब गया और प्रेम की अधिकता के कारण मैं सारी लज्जा, सारा संकोच, मान-मर्यादा, परिवार की कुल-कानि का ध्यान छोड़कर, समाज की चिंता त्यागकर उनको देखती रह गई। छोटे-बड़े पास-पड़ोस, घर वालों की चिंता किए बिना, शर्म-हया त्याग बैठी और ऐसा आचरण कर बैठी, जो कुल-वधू को शोभा नहीं देता, जिससे जग हँसाई होती है, बदनामी होती है। कवि घनानंद कहते हैं, कि जब से उस प्रिया के दर्शन किए हैं, उनकी सुंदरता, मोहक व्यक्तित्व और चतुर आचरण को देख, मैं प्रेम में इतनी डूब गई हूँ कि एक पल भी आँखे बंद नहीं हो पाती हैं। मेरे नेत्रों के पलक सदा खुले रहते हैं क्योंकि उन्हें देखते रहने की लालसा तीव्र से तीव्रतर होती रहती है। मैं नहीं चाहती कि वह मोहिनी मूरत साँवली सूरत एक पल के लिए भी नेत्रों से ओझल हो। अतः पलक झपकाना भी भूल गयी हूँ और निरंतर टकटकी लगाकर उसी ओर देखती रहती हूँ। उनका मनमोहक रूप विशेषतः उनकी जादू भरी, प्रेम भरी चितवन और लुभाने वाले नेत्र इतने आकर्षक हैं, कि लाख प्रयत्न करने पर भी मैं अपने नेत्रों को उनकी ओर से हटा नहीं पाती। भरसक चेष्टा करती हूँ। कुटुंब और जाति की मर्यादा का ध्यान कर उधर से अपना ध्यान और नेत्र हटाना चाहती हूँ पर न ध्यान हटता है और न आँखे उधर की ओर देखना बंद करती हैं। इस तरह प्रिये के रूप और मोहक व्यक्तित्व के कारण मेरे हृदय में प्रेम का जो ज्वार उमड़ा है, उसने मेरी दशा अत्यंत विचित्र बना दी है। मैं पूरी तरह उनपर आसक्त हो गयी हूँ और अब मुझे कोई नहीं रोक सकता।

विशेष- (i) घनानंद की कविता में सुजान शब्द का प्रयोग चतुर कृष्ण, प्रेमी नायिका और उस सुजान नामक वेश्या के लिए हुआ है जिसने घनानंद के साथ बेवफाई की और जिसके कारण वह प्रेम की पीर में इतना डूब गए और ऐसा काव्य लिखा जिसे 'प्रेम की पीर का काव्य' कहा गया है।

(2)

हीन भएँ जल मीन अधीन कहा कहु मो अकुलानि समानै।
मीर सनेही कों लाय निरास है कायर त्यागत प्रानै।
प्रीति की रीति सु क्यौं समझे जड़, मीत के पानि परे कों प्रमानै।
या मन की जु दशा घनआनंद जीवन की जीवनि जान ही जानै।।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - स्वभाव से प्रेमी, भावुक एवं प्रेम की पीर के कवि कहे जाने वाले घनानंद के 'सुजानहित' से उद्धृत इस छंद में कवि ने निष्ठुर प्रियतम की कठोरता और उसके कठोर, निर्मोही स्वभाव के कारण दुःखी और विरह - संतप्प नायिका की दारूण व्यथा का चित्र अंकित करते हुए उसकी वेदना को स्वर, स्वरूप और आकार देने का स्तुत्य प्रयास करते हैं। अपनी सखी से अपनी अंतर्व्यथा बताते हुए नायिक कहती हैं-

व्याख्या- हे सखी! जल से बिछुड़ने पर मछली बहुत व्याकुल होती है, उसकी पीड़ा निरंतर बढ़ती जाती है और अंत में वह मर जाती है। मेरी दशा भी कुछ-कुछ वैसी ही है बल्कि उससे भी अधिक दयनीय और दारूण है। प्रिय से बिछड़ने पर मेरे नेत्र भी अत्यंत त्रस्त हैं, संतृप्त हैं, व्याकुल हैं। मुझे लगता है, कि मेरी पीड़ा मछली की पीड़ा से भी अधिक तीव्र और दारूण है। मछली तो जल से वियुक्त होकर प्राण त्याग देती है, पीड़ा से छुटकारा पा लेती है, यद्यपि उसके इस कार्य से जल को कलंक लगता है, उसे निर्मोही एवं कठोर कहा जाता है। मैं तो मर भी नहीं सकती क्योंकि ऐसा करने से मेरे प्रिय को कुलंक लगेगा, संसार उसकी निष्ठुरता और विश्वासघात के लिए भला-बुरा कहेगा और मैं नहीं चाहती कि मेरे प्रिय को कोई अपशब्द कहे, उसे लांछन लगाए। फिर मछली का प्रिय जल तो जड़ है, अचेतन है और यदि वह प्रीति की रीति नहीं निभाता, कठोर आचरण करता है, अपने प्रेमी मीन के प्राण त्याग के लिए उत्तरदायी होता है तो उसका अपराध यह कहकर कि वह जड़ है, अचेतन है, क्षम्य हो सकता है, परन्तु मेरा प्रियतम तो जड़ नहीं है, वह तो सचेतन जीव है। अतः यदि वह निष्ठुरता का आचरण करता है और उसके कारण मैं प्राण त्याग देती हूँ तो उसे कोई क्षमा नहीं करेगा, उसका अपराध अक्षम्य समझा जाएगा और वह बदनाम होगा और मैं स्वयं कष्ट पाकर भी यह सहन नहीं कर सकती कि मेरे प्रिय पर कोई अँगुली उठाए, उसको कटु शब्द कहे। घोर दुःख में प्राण त्यागना कोई साहस का कार्य नहीं है, वह तो पलायनवाद है, मरने वाले की कायरता और पलायनवृत्ति का द्योतक है, साहस और धैर्य, सहनशीलता और चारित्रिक दृढ़ता तो इसमें है कि कष्ट सहते हुए भी ऐसा आचरण करें जिससे प्रिय पर लांछन न लगे। मैं यही कर रही हूँ। दारूण वेदना सहते हुए भी प्राण त्यागने का विचार तक मन में नहीं लाती। मछली जड़ होने के कारण सच्चे प्रेम की रीति न जानती हो, पर मैं मछली तो नहीं हूँ, और प्रेम की रीति जानती हूँ। अतः मैं ऐसा कोई कार्य नहीं करूँगी जिसमें प्रेमी बदनाम हो, प्रेम का मार्ग कलंकित हो। हे सखी! मेरे विरह संतप्त मन की जो दशा है वह तो मेरे प्राणों के प्राण सुजान ही जानते हैं, अन्य कोई नहीं। भाव यह है, कि सच्चा प्रेमी ही विरही प्रिय की तीव्रता व्याकुलता का अनुमान लगा सकता है, उसकी दयनीय दशा को समझ सकता है।

विशेष -  (i) प्रेम की अनन्यता एवं निष्ठा का सुंदर चित्र है।

(3)

मीत सुजान अनीति करौ जिन हाहा न हूजियै मोहि अमोही।
दीढ़ि कौं और कहूँ नहिं ठौर फिरी दृग रावरे रूप की दोही।
एक बिसास की टेक गहे लगि आस रहे बसि प्रान बटोही।
हौ घनआनंद जीवनमूल दई कित प्यासनि भारत मोही ॥

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - रीतिकाल के रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रीतिनिधि कवि घनानंद के 'सुजानहित' से उद्धृत इस छंद में कवि ने पति - वियुक्ता नारी के हृदय के हाहाकार और प्रिय की निष्ठुरता का वर्णन किया है।

व्याख्या - हे प्रिय ! मैं हा-हा खाकर कहती हूँ, अत्यंत विनीत होकर भिक्षुक की तरह निवेदन करती हूँ, कि आप निर्मोही न बनें, आप यदि निष्ठुर होकर मेरी उपेक्षा करेंगे तो यह नीति विरुद्ध पाप कर्म होगा। प्रेम करने के उपरांत विश्वासघात करना अनीति ही तो है। मैं आपके प्रति अनन्य भाव से समर्पित हूँ, आपके अतिरिक्त मेरा कोई नहीं है, आपको छोड़कर मैं किसी अन्य की ओर देखती तक नहीं, मेरे नेत्रों में केवल आप बसे हुए हैं। प्रेम में पागल से नेत्रों का आधार आप ही हैं। यात्री के लिए जैसे लाठी का संबल है, सहारा है और वह उसके सहारे यात्रा पूर्ण करता है, इसी प्रकार मेरी जीवन-यात्रा में आपका विश्वास ही सहारा है। मैं इसी बात पर जी रही हूँ कि आप अपना दिया हुआ वचन पूरा करेंगे, जो आश्वासन दिया है उसे निभाएँगे और मेरा साथ कभी नहीं छोड़ेंगे। यदि आपने अपना वचन नहीं निभाया, विश्वासघात किया और मेरी उपेक्षा की, उसी दिन मेरे ये प्राण शरीर त्याग देंगे, मेरी जीवन-यात्रा समाप्त हो जाएगी। आप आनंद के बादल हैं। जिससे सदा आनंद की वर्षा होती है, आनंद की वर्षा करना आपका सहज स्वभाव है। आपने अपने प्रेम के जल से मुझे जीवन दिया, आपका प्रेम मेरें लिए संजीवनी बना, अब मुझसे मुँह क्यों मोड़ते हो, मेरे प्रति उदासीनता क्यों अपनाते हो। आपके दर्शनों के अभाव में तो उसी प्रकार मर जाऊँगी जैसे कोई प्यास से तड़प-तड़प कर मर जाता है। मेघ तो जल की वर्षा करता है, बिना भेद-भाव के सबकी प्यास बुझाता है। आप भी आनंद के मेघ हैं फिर यह कठोर और स्वभाव के विपरीत कठोर आचरण क्यों? अपना सहज स्वभाव याद कर मुझे दर्शन दीजिए और मेरे इन तूषित प्राणों की प्यास बुझाकर, मुझे नया जीवन प्रदान कीजिए। प्रेम की रीति का निर्वाह करते हुए, निष्ठुरता त्यागकर, मुझे अपनाइए।
विशेष- (i) प्रान - बटोही - रूपक अलंकार।
(ii) घन आनंद - श्लेष अलंकार।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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